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Showing posts from August, 2014
इचलकरंजी श्री मणिधारी जिनचन्द्रसूरि जैन श्वेताम्बर संघ में पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी ने श्री सुखसागर प्रवचन मंडप में पर्युषण महापर्व के छठे दिन विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा- परमात्मा महावीर के जीवन की सबसे बडी विशिष्टता है कि उनका आचार पक्ष व विचार पक्ष एक समान था। मात्र उपदेश देने वाले तो हजारों हैं, पर उनका अपना जीवन अपने ही उपदेशों के विपरीत होता है। ऐसे व्यक्ति पूज्य नहीं हुआ करते। पूज्य तो वे ही होते हैं, जिनकी कथनी करणी एक समान हो।
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ऐसे समय में परमात्मा महावीर के अजर अमर और समय निरपेक्ष सिद्धान्त ही हमारी रक्षा कर सकते हैं। आज अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह इन तीन सिद्धान्तों को अपनाने की अपेक्षा है। ये तीन सिद्धान्तों के आधार पर पूरे विश्व में शांति और आनन्द का वातावरण छा सकता है।
उन्होंने परमात्मा महावीर के साढे बारह वर्षों में साधना काल की विवेचना करते हुए कहा- परमात्मा महावीर ने क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष इन भावों को तिलांजलि देकर मौन साधना का प्रारंभ किया। क्रोध की स्थितियों में भी वे पूर्ण करूणा के भावों से भर जाते थे। उनके जीवन की व्याख्या सुनते हुए जब उन्हें मिले कष्टों का विशद विवेचन सुनते हैं तो हमारी आंखों में अश्रु धारा बहने लगती है। संगम देव और कटपूतना के द्वारा दिये गये उपसर्गों को जब सुनते हैं तो हमारे रोंगटे खडे हो जाते हैं। परन्तु परमात्मा महावीर तो करूणा की साक्षात् मूर्ति थे। चण्डकौशिक को उपदेश देने के लिये स्वयं चल कर उसकी बाबी तक पहुँचे थे।
उन्होंने परमात्मा महावीर के साढे बारह वर्षों में साधना काल की विवेचना करते हुए कहा- परमात्मा महावीर ने क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष इन भावों को तिलांजलि देकर मौन साधना का प्रारंभ किया। क्रोध की स्थितियों में भी वे पूर्ण करूणा के भावों से भर जाते थे। उनके जीवन की व्याख्या सुनते हुए जब उन्हें मिले कष्टों का विशद विवेचन सुनते हैं तो हमारी आंखों में अश्रु धारा बहने लगती है। संगम देव और कटपूतना के द्वारा दिये गये उपसर्गों को जब सुनते हैं तो हमारे रोंगटे खडे हो जाते हैं। परन्तु परमात्मा महावीर तो करूणा की साक्षात् मूर्ति थे। चण्डकौशिक को उपदेश देने के लिये स्वयं चल कर उसकी बाबी तक पहुँचे थे।
श्री जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ मुंबई में धर्म आराधना का ठाठ लगा
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धर्म नगरी मुंबई में श्री जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ मुंबई के तत्वावधान में आयोजित पू. साध्वी श्री सुलोचनाश्रीजी म. की शिष्या पू साध्वी डाँ. श्री प्रियश्रद्धांजनाश्रीजी म., प्रियश्रेष्ठांजनाश्रीजी म. की पावन निश्रा में धर्म आराधना का ठाठ लगा हैै। ता. 3 अगस्त 2014 को नेम राजुल के जीवन चरित्र पर आधारित नाटिका का मंचन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत में विठल वाडी प्रांगण से बाजते गाजते नेम कुंवर की बारात निकाली गयी। बारात गोडवाल भवन पहुच कर धर्मसभा में परिवर्तित हुयी। प्रवचन के पश्चात बालक बालिकाओं द्वारा नेमकुमार के जीवन से जुडी विभिन्न घटनाओं का सटीक मंचन किया। जिसमें प्रियंवदा दासी द्वारा जन्म की बधाई, कृष्ण महाराजा एवं सत्यभामा व रुक्मणी रानी द्वारा नेम कुंवर को विवाह हेतु मनाना, नेम कुंवर का बारात लेकर आना, पशुओं का आक्रंद सुन अपनी बारात मोडना, नेम कुमार और राजुल के बीच का संवाद, राजुल का बोध एवं संयम लेने का निर्णय तथा राजुल और नेम कुमार का गिरनार की ओर प्रस्थान जैसे विभिन्न द्रश्यों को देख कर उपस्थित जन समुदाय भाव विभोर हो गया।
गलती करना आसान होता है पर उसे accept करना और उसके लिए क्षमा माँगना इतना आसान नहीं होता! हमारा Ego आड़े आ जाता है, और यही बात क्षमा करने पर भी लागू होती है। लेकिन जब इसी काम के लिए कोई खास दिन रख दिया जाता है तो उस दिन पूरा वातावरण “क्षमा मांगने” और “क्षमा करने” के अनुकूल बन जाता है और हम ऐसा आसानी से कर पाते हैं।
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पर्यूषणपर्व(Paryushan
Parv)क्याहै? जैनधर्ममेंपर्यूषणपर्वकेआखिरीदिनएक-दूसरेसे
“मिच्छामिदुक्कड़ं” कहनेकीपरंपराहै। पर्यूषणपर्व, जैनधर्मकेप्रमुखपर्वोंमेंसेएकहै।श्वेताम्बरजैनइसे 8 दिनतकमनातेहैं।इसदौरानलोगपूजा, अर्चना, आरती,
समागम, त्याग, तपस्या, उपवासआदिमेंअधिकसेअधिकसमयव्यतीतकरतेहैं। इसपर्वकाआखिरीदिनसंवत्सरीकेरूपमेंमनायाजाताहैजिसमेंहरकिसीसे “मिच्छामिदुक्कड़ं” कहकरक्षमामांगतेहैं।
“मिच्छामिदुक्कड़ं” काशाब्दिकअर्थहै, “जोभीबुराकियागयाहैवोफलरहितहोÞmay
all the evil that has been done be fruitless**
‘मिच्छामि’ काअर्थक्षमाकरनेसेऔर
‘दुक्कड़ं’ काबुरेकर्मोंसेहै।अर्थात्मेरेबुरेकर्मोंकेलिएमुझेक्षमाकीजिये।
चातुर्मास कालिन दिव्य देशना में सैकड़ो श्रद्धालु हो रहे लाभान्वित
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इचलकरंजी श्री मणिधारी दादावाड़ी संघ के तत्वावधान में पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी ने विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा- तपस्या करना कोई हंसी खेल नहीं है। अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना होता है। बाडमेर निवासी नेमीचंदजी राणामलजी छाजेड परिवार की ओर से दादा गुरुदेव महापूजन का विराट् आयोजन किया गया। इसमं 108 जोडों ने पूजा की। इस महाविधान का संचालन करते हुए मुनि मेहुलप्रभसागर ने दादा गुरुदेव की महिमा बताते हुए पूजन का रहस्य समझाया। अट्ठाई तप के तपस्वियों का पच्चक्खावणी जुलूस का आयोजन किया गया। विधि विधान संजय जैन ने कराया जबकि इन्दौर से आये प्रख्यात संगीतकार लवेश बुरड ने भजनों से वातावरण को भक्तिमय बना दिया। रात्रि देर तक भक्ति भावना का अनूठा आयोजन हुआ।
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जहाज मंदिर द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका अंक अगस्त 2014
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पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म. आदि ठाणा के इचलकरंजी चातुर्मास प्रवेश की झलकियां 1
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पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म. आदि ठाणा के इचलकरंजी
चातुर्मास प्रवेश की झलकियां 1
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